राइट टू वॉटर : मध्यप्रदेश सरकार के लिए बनी बड़ी चुनौती

भोपाल : एमपी में राइट टू वॉटर ( Right to water in mp ) के जरिए मध्य प्रदेश सरकार ( Madhya Pradesh government ) ने एक बड़ी चुनौती हाथ में ली है। मौजूदा व्यवस्थाओं के हिसाब से मध्य प्रदेश सरकार के लिए राइट टू वॉटर कानून बनाकर मध्य प्रदेश के हर आदमी को 55 लीटर पानी मुहैया कराना दूर की कौड़ी नजर आता है। राइट टू वॉटर कानून जरुर सरकार एक साल में बनाकर लागू कर देगी लेकिन लोगों को पानी उपलब्ध कराने में उसे पांच साल से ज्यादा समय लगेगा।

राइट टू वॉटर में गांव मध्य प्रदेश सरकार के लिए सबसे बड़ी चुनौती हैं। हर गांव के हर घर में नल से पानी पहुंचाने में ही सात से आठ साल का वक्त लगेगा। अभी प्रदेश में सिर्फ 12 फीसदी ग्रामीणों के पास नल-जल योजना के कनेक्शन पहुंचे हैं जिनमें से सिर्फ पांच से सात फीसदी लोगों को ही नदी या तालाब का पानी मिलता है।

बाकी की 90 फीसदी से ज्यादा जनसंख्या जमीन के अंदर के पानी पर ही निर्भर है। गर्मी के चार महीने में सिर्फ दस से बारह फीसदी लोगों को ही पर्याप्त पानी मिल पाता है बाकी जनता बूंद-बूंद पानी को तरसती है। मध्य प्रदेश सरकार भी मानती है कि काम मुश्किल है लेकिन नामुमकिन नहीं।

 

मध्य प्रदेश के गांवों में ये हालात :

गांवों में करीब 5 करोड़ 88 लाख की आबादी रहती है। ये आबादी गांवों की एक लाख 33 हजार बसाहटों में रहती है। मध्य प्रदेश सरकार का दावा है कि वो गर्मी के मौसम को छोड़ दिया जाएग तो करीब 88 फीसदी आबादी यानी 1 लाख 28 हजार बसाहटों में 55 लीटर पानी उपलब्ध कराती है।

इनमें 60 फीसदी हैंडपंप और 40 फीसदी जनता को ट्यूबवेल और मोटर पंप के जरिए पानी उपलब्ध कराया जाता है। गर्मी में हालात इसके बिल्कुल उलट हैं। गांव के इन 88 फीसदी लोगों को बमुश्किल पानी मिल पाता है। कई गांवों के लोग पांच-छह किलोमीटर दूर से पानी ढोते हैं और कई जगह सात दिन में एक बार पानी आता है। गांव की ये स्थितियां मध्य प्रदेश सरकार के राइट टू वॉटर को मुंह चिढ़ा रही हैं।

मध्य प्रदेश में तालाबों की स्थिति :

मध्य प्रदेश में 2400 झीलें और तालाब हैं। इनमें से एक से पांच वर्ग किलोमीटर के 150 तालाब हैं जबकि पांच से बीस वर्ग किलोमीटर के 22 तालाब हैं। बड़े तालाब सिर्फ 7 हैं जो बीस वर्ग किलोमीटर से अधिक के हैं। तालाबों के कैचमेंट एरिया को संरक्षित करने के लिए राइट टू वॉटर में कैचमेंट प्रोटेक्शन एक्ट को भी शािमल किया जाएगा।

65 हजार करोड़ होंगे खर्च :

इस पूरी योजना में 65 हजार करोड़ खर्च होंगे। आर्थिक तंगी से जूझ रही मध्य प्रदेश सरकार के पास ये फंड उपलब्ध नहीं है। इसके लिए कर्ज के रास्ते तलाशे जाएंगे। सराकर एडीबी, जायका और जापान से कर्ज लेने के रास्ते तलाश रही है। मध्य प्रदेश सरकार यहां पर पीपीपी मॉडल पर भी काम करेगी। इस कानून के लिए केंद्र सरकार का दरवाजा भी खटखटाया जाएगा।

राइट टू वॉटर में ये प्रावधान :

- हर व्यक्ति को रोजाना 55 लीटर पानी
- साफ और पीने योग्य पानी
- नए तालाबों का निर्माण
- पुराने तालाबों का संरक्षण एवं संवर्धन
- वॉटर बॉडी के कैचमेंट एरिया का संरक्षण

- पानी की रीसाइक्लिंग, वॉटर रिचार्जिंग का प्रावधान
- पानी के परिवहन और वितरण की योजना
- पानी देने वाली एजेंसियों की जवाबदेही तय करना
- लापरवाही बरतने पर सजा का प्रावधान

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