झोपड़ा में रहने वाले के बेटे ने छुआ सफलता का शिखर

देवास। सफलता सुविधाओं और संसाधनों की मोहताज नहीं होती। पन्नाी बीनने वाले के घर में जन्मे आशाराम चौधरी ने अभावों के बीच कड़ी मेहनत और लगन से सफलता के उस शिखर को छुआ, जिस पर सुविधा संपन्न परिवार के किसी भी युवा को रश्क हो सकता है। दो माह पहले आयोजित ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज (एम्स) की प्रतिष्ठित चयन परीक्षा में उन्होंने साढ़े 4 लाख परीक्षार्थियों के बीच 707वीं और ओबीसी श्रेणी में 2 लाख विद्यार्थियों के बीच 141वीं रैंक हासिल की है।

उन्होंने जोधपुर के मेडिकल कॉलेज में एमबीबीएस में एडमिशन ले लिया है और डॉक्टर बनने के सपने को साकार करने की दिशा में कदम बढ़ा दिया है। 23 जुलाई को एमबीबीएस की पहली कक्षा अटेंड करेगा। देवास से लगभग 40 किमी दूर विजयागंज मंडी में रणजीत चौधरी और ममता बाई के घर वर्ष 2000 में जन्मे आशाराम ने बचपन से ही अपने घर में मुफलिसी को करीब से देखा है।

घर के नाम पर चौधरी परिवार के पास घास-फूस का एक झोपड़ा है। पिता पन्नियां बीनकर और खाली बोतलें जमाकर घर का खर्च चलाते हैं। कभी-कभी खेतों में काम भी करना पड़ता है। उनके पास जमीन के नाम पर छोटा सा टुकड़ा तक नहीं है। वे कहते हैं कि जायदाद तो उनका हीरे जैसा बेटा आशाराम ही है। मां गृहिणी है। एक छोटा भाई है जो नवोदय विद्यालय में 12 की पढ़ाई कर रहा है।

सरकारी स्कूल से हुई शिक्षा

परिवार की पृष्ठभूमि से समझा जा सकता है कि आशाराम की पढ़ाई किसी नामी स्कूल में नहीं हुई होगी। गांव के पास ही सरकारी स्कूल में उनकी प्रारंभिक पढ़ाई हुई। चौथी कक्षा में दत्तोतर के मॉडल स्कूल में प्रवेश लिया। आशाराम बताते हैं बचपन से पढ़ाई में कोई कोताही नहीं बरती छठी में जवाहर नवोदय विद्यालय चंद्रकेशर में पहुंच गए।

यहां दसवीं तक पढ़ाई करने के बाद दक्षिणा फाउंडेशन पुणे की प्रवेश परीक्षा दी। आशाराम चुने गए और 11वीं-12वीं की परीक्षा उन्होंने यहीं से अच्छे अंकों के साथ पास की। साथ में मेडिकल प्रवेश की तैयारी भी करते रहे। इसी साल मई में आशाराम ने परीक्षा दी जिसमें एम्स में वे चुन लिए गए।

बीपीएल कार्ड के लिए रिश्वत मांगी तो तत्कालीन एडीएम ने मदद की

आशाराम सफलता का श्रेय माता-पिता के अलावा शिक्षकों और देवास के तत्कालीन एडीएम डॉ. कैलाश बुंदेला को देते हैं। वे बताते हैं- मुझे पता था कि पैसे मेरे पास नहीं है इसलिए सरकारी योजनाओं का लाभ लेकर ही मैं आगे पढ़ पाऊंगा। मुझे बीपीएल कार्ड बनवाना था लेकिन रिश्वत मांगी गई। मैंने डॉ. बुंदेला को परेशानी बताई।

उन्होंने मदद की और कार्ड बन गया। इसके बाद ही पुणे की परीक्षा के लिए पात्र हुआ और दाखिला लिया। जब एम्स में एडमिशन हुआ तो एडीएम सर ने भी शुभकामनाएं दी। आशाराम का कहते हैं कि एम्स से एमबीबीएस करने का मेरा सपना पूरा होने जा रहा है। मैं एक अच्छा डॉक्टर बनकर देश की सेवा करना चाहता हूं।

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