जन्मदिन विशेष : छत्तीसगढ़ के शिल्पकार डॉक्टर रमनसिंह

आम आदमी के हितैषी, छत्तीसगढ़ राज्य को विकास का नया स्वरूप देने वाले डॉ. रमनसिंह की पहचान एक ऐसे शिल्पकार के रूप में हो चुकी है जिनके बिना छत्तीसगढ़ राज्य की कल्पना नहीं की जा सकती है। यह सच है कि डॉ. रमनसिंह मुख्यमंत्री नहीं होते तो छत्तीसगढ़ राज्य का चेहरा कुछ और हो सकता था, लेकिन यह बात भी सौ फीसदी सच है कि उनकी लोकप्रियता एक जनसेवक की रही है। उनके नाम के साथ जुड़ा डॉक्टर की उपाधि महज उपाधि ना होकर जनसेवा का प्रतीक है। अपने गृह जिला वर्तमान कबीरधाम जिला के लोगों का मुफ्त में उपचार करना उन्हें अच्छा लगता था। मन में बचपन से सेवाभाव का बीज बोया गया था जो आज मुख्यमंत्री बन जाने के बाद भी यथावत है। वे राजनेता हैं लेकिन इससे पहले वे रमनसिंह हैं। एक ऐसे रमनसिंह जिनके लिए छत्तीसगढ़ और उनकी जनता सबसे पहले है। छत्तीसगढ़ राज्य और डॉ. रमनसिंह एक-दूसरे के पर्याय बन चुके हैं। छत्तीसगढ़ राज्य की जब भी बात होगी, डॉ. रमनसिंह के बिना अधूरी होगी। एक नये राज्य की सत्ता की डोर 14 सालों से सम्हालने वाले डॉ। रमनसिंह ने छत्तीसगढ़ को एक नया स्वरूप दिया है। पिछड़े और अविकसित राज्य की छाप को खत्म कर विकसित और संसाधनों से भरपूर राज्य की परिभाषा गढ़ी है और पूरी दुनिया के सामने छत्तीसगढ़ को लेकर एक नई इमेज क्रियेट की है। यह वही डॉक्टर साहब हैं जो कभी बीमार लोगों की नब्ज पकड़ कर उनकी बीमारी दूर करते थे लेकिन आज उनके ही हाथों में आज छत्तीसगढ़ की नब्ज है। वे राज्य की बीमारी को भी जानते हैं और उसमें छिपी संभावनाओं को भी और बीमारी का इलाज भी उनके पास है इसलिये छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री डॉक्टर रमनसिंह एक ऐसे व्यक्ति का नाम है जो मुखिया बनकर छत्तीसगढ़ राज्य को विकास की तरफ ले जाने की दिशा में अग्रसर हैं।

सन् दो हजार में जब छत्तीसगढ़ स्वतंत्र राज्य की हैसियत से भारत के नक्शे पर आया तब किसी ने यकिन नहीं किया था कि राज्य की चमक इस तरह बिखरेगी लेकिन ऐसा हुआ। आरंभ के तीन वर्ष जरूर छत्तीसगढ़ के लिये गुमनामी के रहे लेकिन बाद के वर्षों में विकास की जो गूंज हुई, उसे पूरी दुनिया देख रही है। डॉक्टर रमनसिंह ने जब छत्तीसगढ़ राज्य की बागडोर अपने हाथों में ली, तब शायद किसी को यह विश्वास ही नहीं था कि एक ऐसा शांत व्यक्तित्व का धनी राज्य को विकास की चहुमुंखी आभा से आलोकित कर देगा। लोगों का यह सोचना अकारण नहीं था। दूसरे राजनेताओं की तरह डॉक्टर रमनसिंह की खनक नहीं थी बल्कि आम आदमी के लिये तो लगभग नया चेहरा था लेकिन दुर्ग संभाग के लोगों का पुराना परिचय उनसे था। मुख्यमंत्री बन जाने के बाद उन्होंने सबसे पहले अपना संकल्प दोहराया कि राज्य में कोई भूखा नहीं सोयेगा। अपने इस संकल्प की पूर्ति के लिये समाज के आखिरी छोर पर बैठे व्यक्ति तक सस्ते में अनाज पहुंचने लगा। इसी के साथ पहुंचने लगी मुख्यमंत्री की ख्याति। आरंभिक दिनों में विपक्षियों के लिये सस्ता चावल महज शिगूफा था लेकिन आहिस्ता-आहिस्ता इस संकल्प का प्रभाव सामने आने लगा और सरकार तथा आम आदमी के बीच विश्वास का रिश्ता बनता चला गया।

मुख्यमंत्री के रूप में डॉक्टर रमनसिंह ने छत्तीसगढ़ राज्य की नब्ज अपने हाथों में ले ली थी। बीमार और पिछड़े राज्य को उन्होंने आहिस्ता-आहिस्ता ठीक करना शुरू किया। अपने आठ वर्ष के कार्यकाल में छत्तीसगढ़ को पिछड़े और बीमार राज्य से बाहर ला निकाला। आज छत्तीसगढ़ देश दुनिया के साथ दौडऩे के लिये तैयार है। लोकहितैषी मुख्यमंत्री के रूप में डॉक्टर रमनसिंह का जोर था वनवासी परिवारों की तरफ जिनके हिस्से में उपेक्षा और गुमनामी था। ये लोग छत्तीसगढ़ की पहचान है किन्तु स्वयं अपनी पहचान के लिये दशकों से तरसते रहे हैं। रमनसिंह ने इन्हें इनकी पहचान दिलायी और राज्य को गर्व। अलग अलग योजनाओं के माध्यम से इन्हें नये सिरे से जीने का अवसर मिला तो इनके बच्चों को ऊंची शिक्षा का। हर किस्म की परीक्षाओं में बच्चों ने ऐसी काबिलियत दिखायी कि छत्तीसगढ़ तो क्या पूरा देश अंचभित रह गया। यह सूरत बदलने की जो सर्जरी डॉक्टर साहब ने वनवासी समाज के लिये की, वैसा ही कुछ कुछ समाज के किसानों, महिलाओं, मजदूरों और अन्य वर्गों के लिये किया। मुख्यमंत्री और सरकार के बीच आम आदमी की दूरी को पाट दिया गया। जनदर्शन के बहाने सरकार और मुख्यमंत्री गांव गांव जाने लगे, लोगों से बातें करते और उनकी सुनते। समस्याओंं का निपटारा स्थान पर ही कर देते और जो नहीं हो पाता।

राज्य की दो करोड़ 55 लाख जनता अब भीख और भूख से लगभग पूरी तरह मुक्त हो चुकी है। छत्तीसगढ़ की सार्वजनिक वितरण प्रणाली देश के लिये नजीर बन चुकी है। सर्वोच्च न्यायालय ने एक जनहित याचिका की सुनवाई के दौरान केन्द्र सरकार से यह पूछा कि सार्वजनिक वितरण प्रणाली के सुचारू संचालन के लिए छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा किए गए कम्प्यूटरीकरण को पूरे देश में एक मॉडल के रूप में क्यों नहीं अपनाया जाना चाहिए? छत्तीसगढ़ की सार्वजनिक वितरण प्रणाली को दूसरे राज्यों ने भी अपने यहां अमल में लाया है। हर हाथ को काम, हर खेत को पानी, हर किसान को न्यूनतम ब्याज पर खेती के लिए ऋण सुविधा और उसकी मेहनत का पूरा दाम, हर घर को बिजली, हर परिवार को अनाज, हर बच्चे को स्कूल के साथ नि:शुल्क पाठयपुस्तक, हर मरीज को इलाज की अच्छी से अच्छी सुविधा देकर दशकों से उपेक्षित राज्य के नागरिकों को अपने राज्य होने का गौरव दिलाया। महिला शक्ति को एक नयी पहचान मिली और टोनही के नाम पर महिलाओं की प्रतिष्ठा से खिलवाड़ करने वालों को दंड देने की नीयत से कानून पारित किया गया लिहाजा राज्य में अब ऐसे मामलों में कमी देखी गयी है।

स्पष्ट नीति, साफ नीयत, संवेदनशील दृष्टिकोण और गतिशील नेतृत्व से ही किसी भी राज्य अथवा देश को विकास की राह पर कदम दर कदम कामयाबी मिलती है। मुख्यमंत्री डॉक्टर रमनसिंह ने राज्य में सर्वधर्म समभाव का पूरा पूरा खयाल रखा। यही नहीं, राज्य के इतिहास पुरूषों को भी पूरा सम्मान दिया। प्रदेश के पूर्वोत्तर इलाके में रेल कॉरिडोर निर्माण के उनके प्रस्ताव को रेल मंत्रालय ने हाथों-हाथ लेकर अपनी हरी झंडी दे दी है। यह रेल कॉरिडोर छत्तीसगढ़ में यात्री सेवाओं के विस्तार के साथ-साथ माल-परिवहन की दृष्टि से भी काफी उपयोगी होगा। छत्तीसगढ़ में उद्योग-धंधों को विस्तार मिले, इस दृष्टि से संसार भर के निवेशकों को राज्य में नये उद्योग लगाने के लिये आमंत्रित किया। निवेशकों ने छत्तीसगढ़ सरकार की कोशिशों की तारीफ की और निवेश को उत्सुक दिखे। राज्य सरकार चाहती है कि प्रदेश में नये उद्योग आयें लेकिन वे यह भी नहीं चाहती कि कोई भी निवेशक राज्य की प्राकृतिक संपदा को क्षति पहुंचाये। पर्यावरण की सुरक्षा के वादें के साथ निवेश की संभावना टटोलने वाला संभवत: छत्तीसगढ़ पहला राज्य होगा। एक स्वप्रदृष्टा मुख्यमंत्री के हाथों छत्तीसगढ़ सुघर आकार ले रहा है।

- लेखक मनोज कुमार, समागम शोध पत्रिका के संपादक हैं। इस लेख में व्यक्त विचार व्यक्तिगत है।

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