लेखन एवं संवाद के स्तर पर बढ़ती अभद्र स्तरहीन भाषा

लेखन एवम संवाद के स्तर पर बढ़ती अभद्र स्तरहीन भाषा लोकतंत्र के लिए गम्भीर चुनौती
 

आज हमारे देश के सामने एक बड़ी चुनौती है, एक बडा संकट है, संवाद एवम लेखन के स्तर पर अभद्र स्तरहीन हिंसक भाषा का प्रयोग ! देश के चौथे स्तम्भ से लेकर देश के राष्ट्रीय स्तर तक पक्ष - विपक्ष के राजनीतिक चेहरे, देश के प्रबुद्ध जन, नए युवा लेखक, हमारा वर्तमान सीनेमा जगत, हमारी नयी युवा पीढ़ी सब के सब अभद्र स्तरहीन हिंसक भाषा प्रयोग के शिकार है ! यह किसी से नही छुपा है की राष्ट्र के निर्माण मे, राष्ट्र की तरक्की मे, एवम राष्ट्र का भविष्य तय करने मे उपरोक्त चेहरो का एक बडा अहम रोल होता है, एक बडा अहम योगदान होता है आज जब उपरोक्त तबके के लोग संवाद एवम लेखन की दिशा मे शालीन सभ्य भद्र भाषा प्रयोग के स्तर पर भटक गए है तो निश्चित रूप से हमारे राष्ट्र के सामने बहुत बडा संकट खड़ा हो गया है राष्ट्रीय सौहार्द एवम समरसता के दृष्टिकोण से ! 


जिसके पास अभिव्यक्ति के लिए भद्र, सभ्य, स्वस्थ्य, संस्कारित, भाषा नही होती वह व्यक्ति बडे कुल, विशेष कुल मे पैदा भले हुआ हो पर कभी किसी दल का, किसी क्रांति का, किसी समूह का, किसी समाज का स्वस्थ्य नेतृत्व नही कर सकता है ! गांधी को हजार बार पढ़ा है मैंने अर्चिता और हजार बार मुझे एक नयी दिशा देते हुए जान पडते है गांधी ! गांधी पर चिन्तन करते - करते ही वर्षो पूर्व जाना मैने की गांधी ने भाषायिक हिंसा को ही हिंसा की प्रथम इकाई माना है और व्यक्तिगत स्वार्थ, व्यक्तिगत लाभ सिद्धि हेतु जब हम इस भाषायिक हिंसा के शिकार होते हैं तब हमारे भीतर - बाहर जन्म लेती है आचरण की अशुद्धता, हमारे आचरण की यह अशुद्धता हमारे विवेक को विकृत करती है, और जब हमारा विवेक विकृत होता है तब हम असामाजिक कृत्य करते है जब हम असामाजिक कृत्य करते है तो हमारे इस कृत्य से हमारा परिवार, हमारा आस - पडोस, हमारा समाज, एवम हमारा राष्ट्र प्रत्यक्ष रूप से सीधे प्रभावित होता है साथ ही हमारी संस्कारहीन,अभद्र,हिंसक भाषा प्रयोग के चलते यह सबके सब पतन की ओर जाने को विवस हो जाते है,! इन सब के पतन की विवसता के पीछे केवल हमारी संस्कारहीन, मूल्यहीन, हिंसक भाषा संवाद एवम लेखन का प्रतिफल कार्य कर रहा होता है ! 


विवेकानन्द जी ने भी आपसी संवाद के लिए सभ्य, शालीन, आदर्श, भाषा प्रयोग का ही समर्थन किया है ! किसी राष्ट्र के नागरिकों द्वारा उनकी विचारा अभिव्यक्ति की भाषा का क्या योगदान होता है उस राष्ट्र के निर्माण एवम पतन मे उसके विषय मे बताते हुए स्वामी जी ने कहा है “ जिस राष्ट्र के नागरिकों के विचारा अभिव्यक्ति की भाषा उन्नत, संस्कारित, सभ्य एवम आदर्श नही हो सकी, जिस राष्ट्र के नागरिक अभद्र एवम हिंसक भाषा प्रयोग के शिकार है, उस राष्ट्र को इस संसार के मानचित्र पर ज्यादे दिन जीवित नही रखा जा सकता ! पतन की ओर बढ़ रहे दुनिया के तमाम राष्ट्रों को पतन से बचने के लिए भाषायिक स्तर पर सभ्य होने की जरूरत है ” 
आज वर्तमान परिप्रेक्ष्य मे जब अपने देश के शीर्षस्थ पदों पर बैठे बुद्धिजीवियों, राजनीतिक दलों के नेतृत्व कर्ता नेताओं, समाचार स्रोतों ( न्यूज चैनल, पत्र - पत्रिका, समाचार पत्र ) साहित्य की तमाम विधा पर लिखने वाले नए युवा लेखकों, नए दौर 21वी सदी की “मिर्ज़ापुर” जैसी बनती नयी, नयी, फिल्मो, नित नए, नए, इजाद होते युवा संगीतकारो के संगीतविधा पर नए, नए, भावशून्य शब्द प्रयोग, नयी, नयी, संगीत म्यूजिक के साथ अव्यवहारिक भाषा प्रयोग, 90 के दशक में पैदा हुए युवाओं के संवाद, लेखन की भाषा पर गौर करती हूँ तो लगता है क्या इस देश ने कभी विवेकानन्द एवम गांधी के विचारो पर चिन्तन मनन एवम गौर किया है ? 


अगर नही किया तो फिर क्या हम सभ्य भाषा, सभ्य आचरण, सभ्य अभिव्यक्ति, सभ्य समाज, सभ्य राष्ट्र के वाहक बन सकते है ??? शायद नही, कभी भी नही, 
फिर तो हम अपने राष्ट्र को पतन की ओर ले जाने का उपक्रम कर रहे है और जिस राष्ट्र के पतन का वाहक उसके नागरिकों की असभ्य, अराजक, दोषपूर्ण, भाषा बनने लगी है क्या उस देश का भला होने के आसार नजर आते है ??? 
भाषायिक हिंसा की शिकार आज हमारे सोशल मीडिया के मंचों पर जिस तरह का छिछला संवाद होता है, जिस तरह की अभद्र भाषा का प्रयोग होता है, जिस तरह की भाषायिक हिंसा होती है, जिस तरह से बुद्धिजीवी लोगो द्वारा, राष्ट्रीय स्तर के नेताओ द्वारा, यहाँ तक की स्वयम न्यूज़ एंकर द्वारा निर्लज्जता पूर्वक संवाद स्थापित करते समय गाली गलौज वाली भाषा का प्रयोग किया जाता है भाषा की शालीनता बेरहमी से वैचारिक उग्रता के पैरो तले कुचली जाती है उसे देख सुनकर ऐसा लगता है क्या सच मे इस देश मे कोई संविधान कोई कानून कार्य कर रहा है ? क्या सच मे अनुच्छेद 19 का सही दिशा मे पालन किया जा रहा है ??


वर्तमान समय मे इस देश की राजनीति जिस तरह भाषायिक स्तर पर हिंसक हुई है इस देश का चौथा स्तम्भ जिस तरह से संवाद के लिहाज से दिशाहीन हुआ है, इस देश का सीनेमा जिस तरह से अव्यवहारिक भाषा का शिकार हुआ है मेरे शब्द थक जायेंगे उस पर लिखने के लिए ! क्या पक्ष, क्या विपक्ष, सबके सब अभद्र भाषा प्रयोग मे शामिल है खुले मंच से जिस तरह देश के बडे नेता एक दूसरे पर गाली बक रहे हैं आपस मे स्तरहीन 
संवाद स्थापित कर रहे है वह वैचारिक स्तर पर अभिव्यक्ति के पतन का आह्वान है ! दूर्भाग्यपूर्ण स्थिति है इस पतन में शामिल लोगों की संख्या दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है और इनके सामने इस देश का कानून हाथ बांधे टुकुर टुकुर ताक रहा है बेचारगी से !

असहनीय पीड़ा तो इस बात की है की अब हिंसक होते संवाद के द्वारा अभद्र भाषा प्रयोग और धमकी देने वाले लोगों ने खुले मंच से , सार्वजनिक स्थान से, न्यूजरूम से , फेसबुक, ट्विटर, ह्वाट्सअप पर, खुली धमकी, लिखित धमकी देना आरम्भ कर दिया है ! सार्वजनिक रूप से अभद्र होती संवाद एवम लेखन की भाषा,छुद्र अभिव्यक्ति,विकृत मानसिकता, इन सबका असर हमारे घर, परिवार, समाज, देश की सेहत पर तेजी से पडने लगा है ! आज स्तरहीन भाषा प्रयोग ने, स्तरहीन भाषा मे हो रहे संवादो ने, हमारे देश की एकता - अखण्डता को अस्थिर कर दिया है ! देश के भीतर अशान्ति को जन्म दिया है ! देश के भविष्य देश के हमारे नव युवको को, बच्चो को हिंसक बनाने मे बडी भूमिका निभा रहा है ! 
देश के युवा, देश के बच्चे, अगर भाषा के स्तर पर असभ्य होंगे तो फिर उनके आचरण अशुद्ध होंगे, आचरण अशुद्ध हुए तो हमारे राष्ट्र की सभ्यता प्रभावित होगी हमारे राष्ट्र की सभ्यता प्रभावित हुई तो हमारे राष्ट्र के विकास पर संकट खडा होगा अगर हमारे राष्ट्र पर संकट खडा हुआ तो फिर हमारे राष्ट्र का पतन होने से कोई नही रोक सकेगा शायद स्वयम नारायण भी नही !


इस लिए इस देश के प्रत्येक नागरिकों से, इस देश की सरकार से, इस देश के विपक्ष से, इस देश के पक्ष से, सोशल मीडिया के सदस्यो से, समाचार चैनल्स से, समाचार पत्रों से आग्रह है आप सब संवाद एवम लेखन दोनो स्तर पर अभद्र भाषा प्रयोग के दोष से बचे ! साथ ही गुजारिश है इस देश की सरकार से, इस देश की कानून व्यवस्था से, कृपया अभद्र स्तरहीन भाषा गाली - गलौज की भाषा का प्रयोग सामाजिक रूप से खुले मंच से अपने संवाद एवम लेखन मे करने वाले प्रत्येक उस व्यक्ति को अर्थ दण्ड के साथ उचित सजा मिले जिनकी स्तरहीन अभद्र भाषा प्रयोग से देश के सम्मान को चोट पहुँचती है, साथ ही साथ देश की एकता के लिए संकट उतपन्न होता है एवम हमारे देश के संविधान मे उल्लिखित वर्णित अनुच्छेद/धारा की अवहेलना होती है, इस देश की सर्वोच्च न्यायालय की गरिमा को ठेस लगती है !!! 

कलम से : भारद्वाज अर्चिता 

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