मजबूत और निरपेक्ष लोकतंत्र की बुनियाद रखेंगे मतदान 

@लेखक - मनोज कुमार

95 साल की बुर्जुगवार महिला की दिलीइच्छा है कि वह आखिरी बार अपने मत का उपयोग करे. उसे नहीं मालूम कि आने वाले पांच साल के बाद उसे मत डालने का अवसर जीवन में मिलेगा या नहीं लेकिन इस बार वह मौका नहीं चूकना चाहती है. कुछ और भी लोग हैं जो शारीरिक रूप से कमजोर हैं लेकिन वे किसी की मदद से अपने मताधिकार का उपयोग करने की आस पाले हुए हैं. 

चुनाव में अपने मन के प्रत्याशी का चयन करना अधिकार है तो मतदान करना आपका अधिकार है. अक्सर हम इसके लिए स्वयं को निराश पाते हैं. हमारा एक तकियाकलाम होता है कि हमारे एक वोट से क्या बनना-बिगडऩा है लेकिन वे लोग भूल जाते हैं कि एक वोट से सरकार बन भी जाती है और गिर भी जाती है. आमतौर पर पांच वर्ष के अंतराल में होने वाले चुनाव में, वह विधानसभा के चुनाव हो या लोकसभा के, सरकार को एक बड़ा बजट मतदान के लिए प्रेरित करने में खर्च हो जाता है. इस बार भी यही कुछ हो रहा है. यह खर्च अनुचित है और जबकि हम यह जानते हैं कि एक मत से भी योग्य उम्मीदवार बाहर रह जाता है और अयोग्य प्रतिनिधि बन जाता है.

सवाल यह है कि जब समाज में साक्षरता का प्रतिशत बढ़ रहा है तब मतदान के प्रति उदासीनता क्यों? क्या यह सरकार और शासन का दायित्व है कि वह आपको मतदान के लिए प्रेरित करे या फिर आपका अपना परिवार इस बात की जिम्मेदारी ले कि समय पर आपका वोटर आईडी बने और आप अपनी रूचि और समझ के अनुरूप प्रत्याशी का चयन करें. चलन में मताधिकार शब्द का उपयोग होता है जिसका संधि विच्छेद करने पर यह ज्ञात होता है कि मत +अधिकार अर्थात मत देने का अधिकार. इस शब्द के साथ अब जिम्मेदारी जुडऩा समय की जरूरत हो गई है. अधिकार की बात तो सब करते हैं, दायित्वों को भी समझने की जरूरत है. मतदाताओं को जागरूक बनाने में होने वाले खर्च को रोका जा सकता है और रोका नहीं जा सकता है तो कम से कम नियंत्रित किया जा सकता है क्योंकि इसमें होने वाले खर्च में एक बड़ा हिस्सा अर्थहीन हो जाता है. सोशल मीडिया के दौर में अब आसान हो गया है कि हम मतदाता जागरूकता अभियान में होने वाले खर्च को बचा कर अपने दायित्व का निर्वहन करें.

समाज के एक बड़े वर्ग का मत होता है कि मतदाता को जागरूक करने का दायित्व सरकार का है लेकिन वे यह भूल जाते हैं कि सरकार चुनने का दायित्व समाज का है. समाज जितनी सर्तकता और सूझबूझ से अपने जनप्रतिनिधियों का चयन करेगा, उसकी तरक्की के रास्ते उतने ही पक्के होंगे. इस बात में कोई दो राय नहीं है कि वर्तमान समाज युवा समाज है. युवावर्ग की पहुंच और आमद बड़ी है सो ऐसे खर्चों पर नियंत्रण की पहल युवा वर्ग ही कर सकता है. मोहल्ले में युवाओं की एक टीम बना लेनी चाहिए जो स्वयं होकर लोगों के घरों में जाए और उन्हें मतदान करने के लिए प्रेरित करे. मतदान करने या नहीं करने से होने वाले नुकसान या लाभ से अपने आसपास को जागरूक बनाये. ऐसा करके वे न केवल एक मजबूत और निरपेक्ष लोकतंत्र की बुनियाद रखेंगे अपितु एक जिम्मेदार नागरिक होने का प्रमाण भी देंगे. 

अक्सर यह भी देखा जाता है कि मतदाता परिचय पत्र बनाने के लिए आने वाली अड़चनों के कारण लोग पीछे हट जाते हैं. ऐसे में मोहल्लेवार बीएलओ के नाम सहित मोबाइल नम्बर, फोन नम्बर इस मतदाता युवा मित्र की टीम के पास होना चाहिए. फॉर्म भी उनके पास उपलब्ध हो जिसे भरने में मतदाता की मदद करना चाहिए. 

इससे ना केवल लोगों में जागरूकता पनपेगी बल्कि उनमें उत्साह इस बात के लिए भी आएगा कि उनके अपने परिवार के युवा अपने दायित्वों का निर्वहन कर रहे हैं. महिलाओं को भी यह दायित्व सौंपा जा सकता है. अपने आसपास के बीस-पचीस घरों में वे लोगों से सम्पर्क कर मताधिकार के उपयोग करने के बारे में बताएं. आपसी बातचीत में लोगों में इस बात को लेकर उत्साह जगेगा और स्वयमेव मतदान के लिए आगे आएंगे. 

यह एक किस्म का प्रयोग है जिसे शैक्षिक संस्थाओं तक आगे बढ़ाना समय की जरूरत हो गई है. एक दिन नहीं बल्कि निरंतर मतदान के बारे में विमर्श किया जाना जरूरी है. अक्सर होता यह है कि हम तो अपने मत का उपयोग कर आते हैं लेकिन पहली दफा मत देने के लिए आयु पूर्ण कर चुके बच्चे की तरफ हमारा ध्यान नहीं जाता है. पहली दफा किसी कार्य को करने में जो आनंद की अनुभूति होती है, वह समय निकल जाने के बाद की नहीं. मतदान की आयु होते ही उन्हें प्रेरित करना चाहिए कि इस बार के चुनाव में उन्हें मत देना है. 

बेटियों के लिए पिता अहम भूमिका निभा सकते हैं और बेटों के लिए मां को प्रेरित करने के लिए आगे आना होगा. इस बात का भी खास ध्यान रखा जाना होगा कि युवा वर्ग को अपने घिसेपीटे अनुभव सुनाकर उनके मन में निराशा का भाव नहीं पैदा होने देना है. अक्सर देखा गया है कि मतदान के समय पूर्ववर्ती सरकारों की असफलता का रोना रोते हैं और इस बात को पक्का करने की कोशिश करते हैं कि नई सरकार भी क्या बदल लेगी? इस भावना से भी मुक्त होने की जरूरत है. बदलाव हमेशा बेहतरी के लिए होता है और चुनाव इसकी एक प्रक्रिया है. इस बात को ध्यान में रखना होगा कि हमारी यही सोच के कारण भी हम एक बेहतर दिशा की ओर बढऩे से रूक जाते हैं. 

इस तरह मतदान के लिए स्वयं को जिम्मेदार बनायें. औरों को जागरूक करें और एक निष्पक्ष तथा कार्यशील सरकार बनाने में सहयोग करें अन्यथा आपका एक मत आपके लिए सवाल खड़ा कर देगा. सबसे जरूरी बात यह है कि आप स्वयं आशांवित हों, लोगों में आशा का संचार करें और बताएं कि हम बेहतर कल की ओर बढ़ रहे हैं. मतदान केवल अधिकार नहीं, बल्कि समाज की जिम्मेदारी है और जिम्मेदारी का यह गुरूत्तर दायित्व युवा गर्व के कंधों पर है.  

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